कुछ बोलती थी मेरी मां की चूड़ियां
बचपन याद आता है , बचपन के वो त्यौहार याद आते हैं ।
जब हरियाली तीज आती थी , तब मम्मी पैरो में आलता ,और हाथो में मेंहदी हरी हरी चूड़ी सज़ाती थी ।
भर भर हाथो में चूड़ियां पहनती और जब उन्हे पहन कर मम्मी आती तब हम बहुत खुश होते , तब मम्मी हमारी खुशी को देख फूली ना समाती । ऐसा लगता है शायद जब मम्मी की चूड़ी कुछ बोलना चाहती थी ।
सच कितने प्यारे और सुहाने दिन थे ।
जब जब चूड़ियों की खन खन आती रसोई से , हम तेजी से रसोई की तरफ दौड़ते , क्योंकि हम समझ जाते , मम्मी अब खाने के लिए बुलाने वाली है ।
क्योंकि वो आवाज़ बेलन को चलाते समय चूड़ियों से आने वाली खन खन वाली आवाज़ होती थी ।
लेकिन हम कभी यह नहीं समझ पाए , की बेलन चलाने वाले हाथो की चूड़ियां , कलम पकड़ना चाहती है । क्योंकि मेरी मम्मी कभी लेखन भी करती थी ।
मेरी मम्मी के हाथ में चूड़ी जब और भी सजती थी जब मेरी मम्मी रंग बिरंगी चूड़ी पहन कर नाचते थी ।
हम कभी समझ ही नही पाए उन चूड़ियों के पीछे जो कलाई है , वो कभी दर्द भी करती होगी ।
ना जाने कहां खो गई वो चूड़ियों की खन खन वाली आवाज़ ।
अब घर जाती हूं ना तो वो आवाज़ सुनाई नही देती क्योंकि अब मम्मी रसोई में दिखाती नही देती ।
काश तब मम्मी के हुनर को पहचाना होता , तो शायद मम्मी को एक मुकाम मिला होता ।
और मम्मी का सपना भी सच हुआ होता ।
अब भाभी खाना बनाती है , लेकिन वो कांच की चूड़ी नही पहनती ।
तो आवाज़ भी नही आती ।
अब मम्मी भी एक या दो ही चूड़ी पहनती है ।
अब त्योहारों पर मम्मी के घर से रंग बिरंगी चूड़ी भी नही आती ।
सच अब वो कांच की चूड़ी की आवाज सुनाई नही देती।
नीर (निधि सक्सैना)
Abhilasha deshpande
14-Dec-2022 11:08 PM
Beautiful
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Sachin dev
13-Dec-2022 04:38 PM
Well done
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Punam verma
13-Dec-2022 09:10 AM
Very nice
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